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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2630
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान के प्रश्नोत्तर

प्रश्न- कार्ल रोजर्स ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की व्याख्या किस प्रकार की है? वर्णन कीजिए।

अथवा
कार्ल रोजर्स के व्यक्तित्व सिद्धान्त में मानव व्यवहार को किस प्रकार परिभाषित किया गया है? संक्षिप्त विवरण दीजिए।

उत्तर-

 

कार्ल रोजर्स का व्यक्तित्व सिद्धान्त

कार्ल रोजर्स के व्यक्तित्व सिद्धान्त के अन्तर्गत, व्यक्ति की अनुभूतियों, भावों एवं मनोवृत्तियों तथा उनके अपने बारे में तथा दूसरो के बारे में व्यक्तिगत विचारों का अध्ययन विशेष रूप से किया जाता है। रोजर्स का व्यक्तित्व सिद्धान्त आत्मन् सिद्धान्त या व्यक्ति केन्द्रित सिद्धान्त भी कहलाता है। रोजर्स ने व्यक्तित्व सिद्धान्त का वर्णन निम्नांकित तीन प्रमुख भागों में किया है

(1) व्यक्तित्व के स्थायी पहलू -रोजर्स का व्यक्तित्व सिद्धान्त उनके द्वारा प्रतिपादित क्लायंट-केन्द्रित मनोचिकित्सा से प्राप्त अनुभूतियों पर आधारित है। इस सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य व्यक्तित्व में होने वाले परिवर्तनों एवं वर्धन का अध्ययन करना है। इसके दो पहलू निम्न हैं -

(i) प्राणी रोजर्स के अनुसार प्राणी एक ऐसा दैहिक जीव है जो शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दोनों ही तरह से कार्य करता है। इसमें प्रासंगिक क्षेत्र तथा आत्मन दोनों ही सम्मिलित होते हैं। रोजर्स का मत है कि प्राणी सभी तरह की अनुभूतियों का केन्द्र होता है।

(ii) आत्मन् रोजर्स के व्यक्तित्व सिद्धान्त का यह सबसे महत्वपूर्ण संप्रत्यय है। रोजर्स के अनुसार आत्मन् का विकास शैशवावस्था में होता है। जब शिशु की अनुभूतियों का एक अंश या भाग अधिक मूर्त रूप प्राप्त करने लगता है।

(a) आत्म-संप्रत्यय - आत्म-संप्रत्यय से तात्पर्य व्यक्ति के उन सभी पहलुओं एवं अनुभूतियों से होता है, जिससे व्यक्ति अवगत होता है। आत्म-संप्रत्यय का एक बार निर्माण हो जाने से उसमें सामान्यतः परिवर्तन नहीं होता है। हाँ बहुत प्रयत्न करने से उसमें परिवर्तन हो सकता है, जो अनुभूतियाँ व्यक्ति के आत्म-संप्रत्यय के साथ असंगत होती हैं, उसे व्यक्ति स्वीकार नहीं करता है और यदि स्वीकार भी करता है तो विकृत रूप से करता है।

(b) आदर्श आत्मन् - आदर्श आत्मन् से तात्पर्य अपने बारे में विकसित किए गए एक ऐसे छवि से होता है, जिसे वह आदर्श मानता है।

(2) व्यक्तित्व की गतिकी - रोजर्स ने अपने व्यक्तित्व गतिकी की व्याख्या करने के लिए एक महत्वपूर्ण अभिप्रेरक 'वस्तुवादी प्रवृत्ति' की व्याख्या की है। "वस्तुवादी प्रवृत्ति से तात्पर्य प्राणी में सभी तरह की क्षमताओं को विकसित करने की जन्मजात प्रवृत्ति से होता है जो व्यक्ति को उन्नत बनाने या प्रोत्साहन देने का काम करती है।' वस्तुवादी प्रवृत्ति के कुछ खास गुण हैं, जिसमें निम्नांकित प्रमुख हैं -

(i) वस्तुवादी प्रवृत्ति एक जैविक तथ्य है, जोकि व्यक्ति की न्यून आवश्यकताओं जैसे भूख, प्यास, हवा आदि की आवश्यकता की पूर्ति करती ही है। साथ-ही-साथ शरीर के अंगों की संरचनाओं एवं कार्यों को भी सुदृढ एवं मजबूत बनाती है।

(ii) रोजर्स का मत है कि वस्तुवादी प्रवृत्ति सभी तरह के प्राणियों अर्थात मानव एवं पशुओं दोनों में ही होती है।

(iii) वस्तुवादी प्रवृत्ति एक ऐसी कसौटी के रूप में कार्य करती है, जिस पर रखकर व्यक्ति अपनी जिन्दगी की अनुभूतियों की परख या मूल्यांकन करता है।

(3) व्यक्तित्व का विकास - रोजर्स ने व्यक्तित्व के विकास का वर्णन विभिन्न चरणों या अवस्थाओं में नहीं किया है। उन्होंने व्यक्तित्व के विकास में आत्मन् तथा व्यक्तित्व की अनुभूतियों में संगतता को महत्वपूर्ण बतलाया है। जब इन दोनों में अर्थात व्यक्ति की अनुभूतियों तथा उनके आत्म- संप्रत्यय के बीच अन्तर हो जाता है तो इससे व्यक्ति में चिन्ता उत्पन्न होती है। असंगतता के अन्तर से उत्पन्न इस चिन्ता की रोकथाम के लिए व्यक्ति कुछ खास प्रक्रियाएँ प्रारम्भ कर देता है। इसे प्रतिरक्षा की संज्ञा दी गयी है। रक्षात्मक उपायों का अधिक प्रयोग करने से व्यक्तित्व में दृढ़ता का विकास हो जाता है। वैक्तिकीकरण, क्षतिपूर्ति, विभ्रम, गलत विश्वास तथा अन्य तंत्रिकातापी व्यवहार इस तरह की दृढ़ता से उत्पन्न होते हैं।

यदि व्यक्ति की अनुभूतियों एवं आत्म-प्रत्यय में कोई अन्तर नहीं होता है, तो इससे एक स्वस्थ व्यक्ति का विकास होता है। इस तरह से रोजर्स का तात्पर्य उन व्यक्तियों से होता है जो अपनी क्षमताओं एवं योग्यताओं का सही-सही प्रयोग करते हैं। रोजर्स ने पूर्णरूपेण सफल व्यक्ति के निम्नांकित पाँच गुण बतलाए हैं -

(i) एक पूर्णरूपेण सफल व्यक्ति अपनी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति स्पष्ट शब्दों में करते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी अनुभूतियों की माँगों पर ध्यान देते हैं और उसके अनुरूप व्यवहार करने की कोशिश करते हैं।

(ii) अपनी जिन्दगी के प्रत्येक क्षण का उपयोग ऐसे व्यक्ति सही अर्थ में करते हैं तथा प्रत्येक क्षण में कैसे रहना चाहिए, उसका उन्हें पूरा-पूरा ज्ञान होता है।

(iii) ऐसे व्यक्ति एक निश्चित विश्वास के साथ व्यवहार करते हैं और उन्हें अपने व्यवहार की सार्थकता पर पूर्ण विश्वास होता है। इसे रोजर्स ने जैविक विश्वास का नाम दिया है।

(iv) रोजर्स के अनुसार एक पूर्णरूपेण सफल व्यक्ति की चौथी विशेषता आनुभाविक स्वतंत्रता है। आनुभाविक स्वतंत्रता से तात्पर्य व्यक्ति के इस अनुभूति से होता है कि वह कोई भी कार्य करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र होता है तथा प्रत्येक व्यवहार एवं उसके परिणाम के लिए वह स्वयं ही जिम्मेवार है।

 

(v) पूर्णरूपेण सफल व्यक्ति की एक विशेषता यह भी है कि इसमें सर्जनात्मकता का गुण होता है। ऐसे व्यक्ति रचनात्मक ढंग से अपना समय व्यतीत करते हैं तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ण भरपाई करने की कोशिश करते हैं। ऐसे व्यक्ति बदलती हुई परिस्थितियों के साथ रचनात्मक ढंग से समायोजन कर लेते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मनोविज्ञान की परिभाषा दीजिये। इसके लक्ष्य बताइये।
  2. प्रश्न- मनोविज्ञान के उपागमों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- व्यवहार के मनोगतिकी उपागम को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- व्यवहारवादी उपागम क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- संज्ञानात्मक परिप्रेक्ष्य से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- मानवतावादी उपागम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- मनोविज्ञान की उपयोगिता बताइये।
  8. प्रश्न- भगवद्गीता में मनोविज्ञान को किस प्रकार समाहित किया है? उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- सांख्य दर्शन में मनोविज्ञान को किस प्रकार व्याख्यित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  10. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में मनोविज्ञान किस प्रकार परिभाषित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  11. प्रश्न- मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या तात्पर्य है? सामाजिक परिवेश में इस विधि की क्या उपयोगिता है?
  12. प्रश्न- मनोविज्ञान की निरीक्षण विधि का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
  13. प्रश्न- मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए इसकी विधियों पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? सह-सम्बन्ध के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की गणना विधियों का वर्णन कीजिए। कोटि अंतर विधि का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की दिशाएँ बताइये।
  17. प्रश्न- सह-सम्बन्ध गुणांक के निर्धारक बताइये तथा इसका महत्व बताइये।
  18. प्रश्न- जब {D2 = 36 है तथा N = 10 है तो स्पीयरमैन कोटि अंतर विधि से सह-सम्बन्ध निकालिये।
  19. प्रश्न- सह सम्बन्ध गुणांक का अर्थ क्या है?
  20. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के किन्ही दो सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए
  22. प्रश्न- दीर्घीकृत ध्यान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके निर्धारक की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के स्वरूप को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  24. प्रश्न- चयनात्मक अवधान तथा दीर्घीकृत अवधान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  26. प्रश्न- क्लासिकी अनुबन्धन सिद्धान्त का विवेचन कीजिए तथा प्राचीन अनुबन्धन के प्रकार बताइये।
  27. प्रश्न- क्लासिकल अनुबंधन तथा क्लासिकल अनुबंधन को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए।
  28. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन का अर्थ और उसकी आधारभूत प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अधिगम अन्तरण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार बताइये।
  30. प्रश्न- शाब्दिक सीखना से आप क्या समझते हैं? शाब्दिक सीखने के अध्ययन में उपयुक्त सामग्रियाँ बताइए।
  31. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिये।
  32. प्रश्न- शाब्दिक सीखना में स्तरीय विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है?
  33. प्रश्न- शाब्दिक सीखना की संगठनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का महत्त्व बताइये।
  35. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन में संज्ञानात्मक कारकों की भूमिका बताइये।
  36. प्रश्न- अधिगम के नियमों का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- परिवर्जन सीखना पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- सीखने को प्रभावित करने वाले कारक।
  39. प्रश्न- स्मृति की परिभाषा दीजिये। स्मृति में सुधार कैसे किया जाता है?
  40. प्रश्न- स्मृति के प्रकारों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  41. प्रश्न- स्मृति में संरचनात्मक एवं पुनर्सरचनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- विस्मरण के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रासंगिक तथा अर्थगत स्मृति से क्या आशय है? इनमें विभेद कीजिये।
  44. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति को संक्षेप में बताते हुये दोनों में विभेद कीजिये।
  45. प्रश्न- 'व्यतिकरण धारण को प्रभावित करता है।' इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- स्मृति के स्वरूप पर प्रकाश डालिए। स्मृति को मापने की विधियों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- विस्मरण के निर्धारक और कारणों का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- संकेत आधारित विस्मरण किसे कहते हैं? विस्मरण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- स्मरण के प्रकार बताइयें।
  50. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति में अन्तर बताइये।
  51. प्रश्न- स्मृति सहायक प्रविधियाँ क्या हैं?
  52. प्रश्न- विस्मरण के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- पुनः प्राप्ति संकेतों के अभाव में किस प्रकार विस्मरण होता है?
  54. प्रश्न- स्मृति लोप क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- विस्मरण के अवशेष-प्रसक्ति समाकलन सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।
  56. प्रश्न- ध्यान के कौन-कौन से निर्धारक होते है?
  57. प्रश्न- दीर्घकालीन स्मृति तथा उसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- ध्यान की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  59. प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  60. प्रश्न- बुद्धि के संज्ञानपरक उपागम से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों तथा महत्व का वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- गिलफोर्ड के त्रिआयामी बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  63. प्रश्न- 'बुद्धि आनुवांशिकता से प्रभावित होती है या वातावरण से। स्पष्ट कीजिये।
  64. प्रश्न- बुद्धि को परिभाषित कीजिये। इसके विभिन्न प्रकारों तथा बुद्धिलब्धि के प्रत्यय का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार बताइये।
  66. प्रश्न- वंशानुक्रम तथा वातावरण बुद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
  67. प्रश्न- संस्कृति परीक्षण को किस प्रकार प्रभावित करती है?
  68. प्रश्न- परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या से क्या आशय है?
  69. प्रश्न- उदाहरण सहित बुद्धि-लब्धि के प्रत्यन को स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- बुद्धि परीक्षणों के उपयोग बताइये।
  71. प्रश्न- बुद्धि लब्धि तथा विचलन बुद्धि लब्धि के अन्तर को उदाहरण सहित समझाइए।
  72. प्रश्न- बुद्धि लब्धि व बुद्धि के निर्धारक तत्व बताइये।
  73. प्रश्न- गार्डनर के बहुबुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- थर्स्टन के समूह कारक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त के आधार पर बुद्धि की व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  77. प्रश्न- व्यक्तित्व से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयुक्त परिभाषा देते हुए इसके अर्थ को स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- व्यक्तित्व कितने प्रकार के होते हैं? विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण किस प्रकार किया है?
  79. प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  80. प्रश्न- व्यक्तित्व पर ऑलपोर्ट के योगदान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- कैटेल द्वारा बताए गए व्यक्तित्व के शीलगुणों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  82. प्रश्न- व्यक्ति के विकास की व्याख्या फ्रायड ने किस प्रकार दी है? संक्षेप में बताइए।
  83. प्रश्न- फ्रायड ने व्यक्तित्व की गतिकी की व्याख्या किस आधार पर की है?
  84. प्रश्न- व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- व्यक्तित्व के मानवतावादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- कार्ल रोजर्स ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की व्याख्या किस प्रकार की है? वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- व्यक्तित्व के शीलगुणों का वर्णन कीजिये।
  88. प्रश्न- प्रजातान्त्रिक व्यक्तित्व एवं निरंकुश व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिये।
  89. प्रश्न- शीलगुण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  90. प्रश्न- शीलगुण उपागम में 'बिग फाइव' (OCEAN) संप्रत्यय की संक्षिप्त व्याख्या दीजिए।
  91. प्रश्न- प्रेरणा से आप क्या समझते हैं? आवश्यकता, प्रेरक एवं प्रलोभन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- विभिन्न शारीरिक एवं सामाजिक मनोजनित प्रेरकों का वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- प्रेरणाओं के संघर्ष से आप क्या समझते हैं? इसके समाधान करने के तरीकों पर प्रकाश डालिये।
  94. प्रश्न- आवश्यकता-अनुक्रमिकता से क्या तात्पर्य है? मैसलो के अभिप्रेरणा सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  95. प्रश्न- उपलब्धि प्रेरक एक प्रमुख सामाजिक प्रेरक है। स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- “बाह्य अभिप्रेरण देने से आन्तरिक अभिप्रेरण में कमी आती है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  97. प्रश्न- जैविक अभिप्रेरकों के दैहिक आधार का वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- आन्तरिक प्रेरणा क्या है और यह किस प्रकार कार्य करती है?
  99. प्रश्न- दाव एवं खिंचाव तंत्र अभिप्रेरित व्यवहार में किस प्रकार कार्य करता है?
  100. प्रश्न- जैविक और सामाजिक प्रेरक।
  101. प्रश्न- जैविक तथा सामाजिक अभिप्रेरकों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  102. प्रश्न- आन्तरिक एवं बाह्य अभिप्रेरण क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- प्रेरणा चक्र पर टिप्पणी लिखो।
  104. प्रश्न- अभिप्रेरणात्मक व्यवहार के मापदण्ड बताइये।
  105. प्रश्न- पशु प्रणोद की माप का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- संवेग से आप क्या वर्णन कीजिये। समझते हैं? इसकी विशेषतायें तथा इसके विकास की प्रक्रिया का
  107. प्रश्न- सांवेगिक अवस्था में क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं?
  108. प्रश्न- संवेग के जेम्स लांजे सिद्धान्त तथा कैनन बार्ड सिद्धान्त का तुलनात्मक विवरण दीजिये।
  109. प्रश्न- संवेग शैस्टर-सिंगर सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये।
  110. प्रश्न- संवेग में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  111. प्रश्न- संवेगों पर किस प्रकार नियंत्रण कर सकते हैं? स्पष्ट कीजिये।
  112. प्रश्न- 'पॉलीग्राफिक विधि झूठ को मापने की उत्तम विधि है। स्पष्ट कीजिये।
  113. प्रश्न- संवेग के
  114. प्रश्न- संवेग के कैननबार्ड सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा उनकी मानसिक योग्यता सामान्य छात्रों से कम होती है।
  115. प्रश्न- सार्वभौमिक एवं विशिष्ट संस्कृति संवेग की अभिवृत्ति के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  116. प्रश्न- गैल्वेनिक त्वक् अनुक्रिया का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- संवेग के आयामों को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले बाह्य शारीरिक परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  120. प्रश्न- झूठ संसूचना से क्या आशय है?
  121. प्रश्न- संवेग तथा भाव में अन्तर बताइये।
  122. प्रश्न- संवेग के मापन की कोई दो विधियाँ बताइये।

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